Sunday 30 September 2012

आईनों का जहान

धरती और आसमान में बीच एक जगह थी .. जहाँ बादलों की छत थी और ओस की ज़मीन.. धरती पर  रहने वाले उस जगह को "बादलों का घर" कहते थे.  और आसमान के रहने वाले उसे "धरती का पालना" कह कर पुकारते थे..कुदरत का अजीब ही करिश्मा थी वो जगह.. उसका अपना कोई नाम नहीं था .. और ना वहाँ रहने वालों ने उस जगह को कभी कोई नाम दिया.. हाँ वो एक आबाद जगह थी.. धरती वाले सोचते थे कि वहाँ परियां रहती है.. और आसमान वालों का ख्याल था कि वहाँ यक्ष और गन्धर्वों का घर है. ओस की ज़मीन और बादलों  की छत के नीचे कहीं बीच में आईने लगे थे.. जिनकी सतह समन्दर की लहरों की तरह हिलोरे  लेती  थी.. और वो लहरें ऐसे चमकती थीं जैसे नदियों का बहता पानी.. 

उन आइनों की सिफत ऐसी थी कि उनमे लोगों के ख्याल और कल्पनाएँ आकार लेती नज़र आती थी.. जीते जागते चेहरे, चलती- फिरती तसवीरें, आवाजें.. बिलकुल वैसे जैसे हम फिल्म देखते है .. जब भी धरती या आसमान का कोई रहवासी कोई ख्याल बुनता या कल्पनाएँ करता तो  वो सब  उन आइनों में धीरे- धीरे  आकार लेने लगता.. ऐसा सदियों से चला आ रहा था... धरती वाले और आसमान वाले  किसी को भी इस बात की खबर नहीं थी..  पर उस जगह के रहने वाले इन आइनों और उनमे बोलने वाली तस्वीरों को हमेशा से देखते आ रहे थे.. ख्याल आज के , कल के.. आने वाले दूर के कल और अपने, दूसरों के, बेगाने लोगों के भी.. बस सिर्फ ख्याल और उनकी दुनिया.. भले-बुरे, कभी डरावने,  कभी कोमल, सुख के दुःख के .. ख्याल और उनकी कल्पनाएँ.. जब भी कोई ख्याल या कल्पना सच होने वाली होती तो उस वक़्त ऐसा लगता जैसे आइनों में शांत बहता  समन्दर अचानक जाग गया हो, उसकी लहरों की धडकने तेज़ हो जाती और लगता  मानो पानी आइनों  के दायरे से बाहर आना और सब कुछ भिगो देना चाहता हो..

एक दिन उस जगह पर रहने वाले किसी ने सवाल किया.. कि क्या कभी ये सब ख्याल, ये कल्पनाएँ .. सब सच में बदलते हैं? 

जवाब आय़ा कि हर ख्याल इतना ताकतवर नहीं होता कि उसकी कल्पना हकीकत बन जाए.. कुछ ख्याल मामूली होते हैं, कुछ गैरज़रूरी, कुछ सिर्फ दिल-दिमाग की हलचल और कुछ ख्याल और कल्पनाएँ  ऐसी  होती हैं कि जो सिर्फ कल्पनाओं में ही रहे  तो अच्छी लगती हैं... उनका वास्तविकता से  कोई लेना देना नहीं..

सवाल करने वाले ने  जवाब देने वाले का हाथ पकड़ा और उसे एक आईने की तरफ ले गया.. "इसे देखो कितनी सुन्दर कल्पना है,  कितना बेहतरीन ख्याल .. मैं कई सालों से इसे यहाँ  अलग अलग आइनों में देख रहा हूँ.. ये तो अब तक सच हो ही गया होगा ना.."
जवाब देने वाले ने एक गहरी नज़र से आईने को देखा फिर कहा.. "नहीं इस ख्याल की ताबीर अब तक नहीं हुई है.. कुछ ख्याल उसे बुनने वाले के मन में बने रह जाते हैं, मिटते नहीं.. सच तो नहीं  हो पाते पर उनका असर ख़त्म नहीं होता.. और इसलिए जब तक वो कल्पना उसे देखने वाले के मन में जवान है तब तक वो ख्याल, इन आइनों के पानी में भी जिंदा है.. इनकी तसवीरें सालों तक यूँही लहरों में बहती रहती है तब तक, जब तक कि वक़्त के हाथ उनके रंगों को मिटा नहीं देते.. 
कहने वाला आगे  कहता गया.. "ये ख्याल, ये कल्पनाएँ .. धरती और आसमान के रहने वालों के  दिलों का आइना हैं.. उनके दिमागों की परख.. उनकी जिंदगियों का उतार चढ़ाव" .. तभी सवाल पूछने वाले ने टोका.. "तो क्या इन ख्यालों और कल्पनाओं को देखकर हम धरती और आसमान और वहाँ के लोगों के वर्तमान और  भविष्य का अंदाज़ा लगा सकते हैं..?"

जवाब देने वाला जोर से हंसा .. "नहीं मेरे बच्चे.. पूरी तरह से तो नहीं .. तुम इन आइनों से सिर्फ इतना जान सकते हो कि एक ख़ास वक़्त पर एक इंसान या एक आसमानी देव क्या सोच रहा है .. क्या चाहता  है.. क्या नहीं चाहता.. ये ख्याल, ये कल्पनाएँ  हर पल अपना रंग बदलती हैं ..  इन्हें  गौर से देखो .. तो तुम जानोगे कि हर बार ये आईने तुम्हे एक नई कहानी दिखा रहे हैं .. जबकि उस कहानी के पात्र अक्सर पुराने होते हैं .. ये ख्याल एक इशारा हैं भविष्य का, एक झलक है किसी के वर्तमान की.. लेकिन जैसा कि कुदरत ने इंसान को तेज़  बुद्धि और और एक चालाक दिमाग दिया और आसमान के देवों  को एक दार्शनिक का, आराम तलबी का  दृष्टिकोण दिया तो ये दोनों ही अपने अपने नज़रिए से ख्याल बुनते हैं .. और अपने मनचाहे आज और कल की तलाश इन कल्पनाओं में करते हैं.."

सवाल करने वाला एक आईने के पास बैठ गया.. उसकी लहरों  को बहता देखता रहा.. उसके पानी का छलकना और शांत हो जाना और उसकी तस्वीरों का आपस में गडमड्ड होना .. कभी लगता कि एक ही तस्वीर है फिर लगता कि उसके ऊपर , उसमे मिली हुई कोई और तस्वीर और चेहरे हैं.. फिर दिखता कि कोई नया ख्याल पुराने को ढकता जा रहा है.. फिर दिखा कि नहीं पुराना वाला ही नए को अपने में समाये जा रहा है.. कभी दिखता कि धरती और आसमान के रहने वालों के ख्याल और  कल्पनाएँ जुदा जुदा हैं.. तो कभी वे आपस में मिलते और एकाकार होते नज़र आते... 

ख्यालों का सिलसिला यूँही चलता चला आ रहा है..

Sunday 16 September 2012

मुझे कबूल नहीं

टुकडो में चलती सरकती ज़िन्दगी..

तुम्हारी दी हुई रोटी से  मेरी भूख नहीं मिटती.. तुम्हारे दिए पानी से मेरे गले की प्यास और भी बढ़ जाती है. 

तुम्हारे दिए हुए टुकड़े मेरे पसरे हुए आँचल का मज़ाक बनाते हैं और मैं कुछ नहीं कर पाती..

तुम्हारे चलाये हुए रास्तों पर सिवा काँटों और पत्थरों के और कुछ नहीं मिलता.. इसलिए वहाँ पैर  अब जाना नहीं चाहते..

तुम्हारे हाथ मेरे गले पर कसते जा रहे हैं और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए प्रशंसा के कुछ शब्द कहूँ .. तुम्हारे लिए कोई गीत गाऊं.. नहीं ये नहीं हो सकेगा..

तुम्हारे पैर मेरा चेहरा कुचलते जा रहे हैं और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे आगे सर झुकाए श्रध्दा से खड़ी रहूँ .. नहीं अब ये भी नहीं हो सकेगा..

तुम्हारी बनाई इस  सल्तनत में मेरे रहने के लिए जो बाड़ा तुमने दिया है वहाँ अब मेरा दम घुटता है.. 

मेरे लिए जो टुकड़ा ज़िन्दगी का तुमने भेजा है वो मुझे अब कबूल नहीं है..

मुझे पता है कि तुमको मेरे कहे शब्दों से ऐतराज है पर मुझे भी तुम्हारे बनाये नियम कानूनों  से ऐतराज है..

मुझे रूसो के शब्द याद आते हैं .. "मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है लेकिन हर जगह जंजीरों में जकड़ा है"

तुमने भी मेरी ख्वाहिशों और तमन्नाओं पर अपने हुकुम की जंजीरें, बंदिशें और बंधन सजा रखे हैं...पर मैं  इस पवित्र बोझ को हमेशा के लिए उठा कर नहीं  चलना चाहती...

मैं तुमसे  रास्ता बचा कर चलती हूँ.. दूर, ज़रा हट कर ही निकलती हूँ.. पर तुम हर बार मेरे रास्ते के बीच में आकर खड़े हो जाते हो.. ये बहुत बुरी आदत है तुम्हारी .. रास्ता काटने की .. अपना  रौब और अपनी मर्ज़ी ज़ाहिर करने की आदत है तुम्हारी..

पर तुम आजकल  भूलने लगे हो कि  अब तुम्हारी ये आदतें, ये तरीके... मुझे विद्रोही बनाने लगे हैं.. बना चुके हैं.. पर तुम देखते नहीं क्योंकि देखने और सुनने को तुम्हारे पास समय और क्षमता नहीं ...